2500 वर्ष पूर्व भारत वर्ष की धरती पर जब अलेकजेंडर ( सिकंदर ) ने आक्रमण किया था तब पोरस ने सिकंदर से युद्ध किया था….. पोरस की पराजय हुयी उसके बहुत से कारण थे किन्तु सबसे प्रमुख कारण था तक्षशिला का शासक जिसने सिकंदर से संधि कर ली थी |
अपने ही राष्ट्र के एक राज्य के शासक के विरुद्ध तक्षशिला नरेश ने एक आक्रन्ता का साथ दिया था |
बाद में आचार्य चाणक्य ने बिखरे हुये छोटे छोटे जनपदों और राज्यों को संगठित कर सिकंदर की सत्ता का समूल नाश किया और तक्षशिला नरेश को राष्ट्र और संस्कृति से द्रोह करने का दंड उसे शासन से विमुख करके किया था |
भारत वर्ष के इतिहास का सूक्ष्मता से अध्ययन करें तो आप पायेंगे की हर युग और काल में आपको विदेशी आक्रन्ता, सभी किरदार मिलेंगे |
यह अनवरत चलने वाला युद्ध है जो राष्ट्र, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिये प्राण न्योछावर करने वालों और अपनी ही धरा, धर्म और संस्कृति से द्रोह करने वाले और अपने निहित स्वार्थ हेतु आक्रन्ताओं के पक्ष में लड़ने वालों के बीच चलता रहेगा |
2500 साल पहले के जनमानस की आत्मव्यथा के विषय में सोचिये, क्या रही होगी जब सिकंदर नामक आंधी भारत वर्ष के असंगठित छोटे गण राज्यों और जनपदों को रौदती हुयी आगे बढ़ रही थी | क्या वे भी अपने राष्ट्र,धर्म और संस्कृति के विषय यूँ चिंतित नही हुये होंगे?
किन्तु क्या हुआ? कितने ही आक्रन्ता आये और चले गये, तक्षशिला नरेश जैसे कितने ही गद्दार और दोगले पैदा हुये और मिट गये किन्तु ना या राष्ट्र मिटा और ना इसकी संस्कृति….. बस अलग अलग युग और काल में आक्रमण का स्वरूप बदला और उसके अनुरूप ही संस्कृति के पुर्नजागरण और पुर्नस्थापना का स्वरूप |
अपनी आत्मकथा या कहें आत्मगाथा में हर कोई अपने आपको नायक ही दिखाता है किन्तु एक बात स्मरण रखिये आज आप जिस भी विचारधारा, नींति और नियत के साथ चल रहे हैँ उसके अनुसार इतिहास बतायेगा की आप किस पक्ष में खड़े थे और उसी के अनुरूप आपको और आपके वंशजो को याद रखा जायेगा |
जैसे रानी लक्ष्मीबाई और सिंधिया को याद किया जाता है, आज बेशक़ रानी लक्ष्मी बाई के वंश का कोई अंश शेष नही(जैसा की राष्ट्र पर मिटने वालों के साथ अक्सर होता है ) और भले ही सिंधिया के वंशज आज भी हो किन्तु जनमानस में किसका क्या स्थान है सभी जानते हैँ |
Editor-in-chief
Raakesh Rajput
Living Spirit